- सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से मचा बवाल
- विपक्ष ने बताया आरक्षण खत्म करने की साजिश
- आरक्षण पर रोक लगा चुका है हाई कोर्ट
- नागराज केस साबित हुआ मील का पत्थर
सुप्रीम कोर्ट की हालिया एक टिप्पणी के बाद एक बार फिर से पदोन्नति में आरक्षण के मामले को लेकर विवाद गहरा गया है. शीर्ष अदालत ने शु्क्रवार को अपनी टिप्पणी में कहा कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना या नहीं यह राज्य सरकारों के पर निर्भर करता है. कोर्ट ने कहा कि कोई अदालत एससी और एसटी वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के आदेश जारी नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को विपक्षी नेता आरक्षण पर खतरे के तौर पर देख रहे हैं और इस पर बवाल शुरू हो गया है.
संसद के बजट सत्र के बीच कोर्ट की ऐसी टिप्पणी पर घमासान तय है. अब विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी पर पुनर्विचार याचिका दायर करे. विपक्षी ही क्यों बीजेपी के सहयोगी दल भी कोर्ट की टिप्पणी से सन्न हैं और इसे चुनौती देने की बात कर रहे हैं. कांग्रेस खुले तौर पर कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की बात कह चुकी है.
कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार के एससी और एसटी के आंकड़े जमा करने के निर्देश दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए मजबूर नहीं है. हालांकि प्रमोशन में आरक्षण का विवाद नया नहीं है समय-समय पर कोर्ट और राज्य सरकार इस बारे में अहम कदम उठा चुके हैं.